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15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता की यात्रा
15 अगस्त, 1947, भारतीय इतिहास के इतिहास में एक ऐतिहासिक दिन था, जब राष्ट्र अंततः औपनिवेशिक शासन की बेड़ियों से मुक्त हो गया। स्वतंत्रता की यात्रा कठिन थी, जो दशकों के संघर्ष, बलिदान और लचीलेपन से चिह्नित थी। इस महत्वपूर्ण दिन पर, भारत एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में उभरा, जो वर्षों की औपनिवेशिक पराधीनता के बाद अपनी नई आज़ादी का जश्न मना रहा था।
स्वतंत्रता की राह:
महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और अनगिनत अन्य नेताओं के अथक प्रयासों से, 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में भारतीय स्वतंत्रता की खोज में तेजी आई। अहिंसक विरोध प्रदर्शन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन ने ब्रिटिश शासन से मुक्त होने के लिए भारतीय लोगों की सामूहिक इच्छा का प्रदर्शन किया।
क्रूर दमन, कारावास और यहां तक कि मौत का सामना करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदान ने एक राष्ट्रीय चेतना जगाई जिसे आसानी से वश में नहीं किया जा सकता था। “पूर्ण स्वराज” (पूर्ण स्वतंत्रता) का आह्वान देश भर में लाखों लोगों के लिए रैली का नारा बन गया।
स्वतंत्रता दिवस – 15 अगस्त, 1947:
जैसे ही 14 अगस्त, 1947 को आधी रात हुई, भारतीय तिरंगा पहली बार फहराया गया, जो एक स्वतंत्र राष्ट्र के जन्म का प्रतीक था। जवाहरलाल नेहरू के प्रतिष्ठित “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” भाषण ने एक नए युग के कगार पर खड़े राष्ट्र के सपनों और आकांक्षाओं को प्रतिध्वनित किया।
स्वतंत्रता के बाद भारत में परिवर्तन:
नई मिली आज़ादी ने भारत में परिवर्तनकारी बदलावों की एक शृंखला ला दी। देश ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की स्थापना करते हुए एक लोकतांत्रिक ढांचे को अपनाया। भारत का संविधान 1950 में अपनाया गया था, जिसमें उन सिद्धांतों को शामिल किया गया था जो देश के शासन का मार्गदर्शन करेंगे।
आत्मनिर्भरता और विकास पर जोर देते हुए आर्थिक नीतियों में बदलाव किया गया। जातिगत भेदभाव और लैंगिक असमानता जैसे मुद्दों के समाधान के लिए सामाजिक सुधार शुरू किए गए। भारत सरकार ने देश को आगे बढ़ाने के लिए औद्योगीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया।
स्वतंत्रता के बाद का नेतृत्व:
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र-निर्माण के प्रारंभिक वर्षों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नेहरू के नेतृत्व ने धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और लोकतंत्र के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की नींव रखी।
मुक्ति की ओर ले जाने वाली घटनाओं की श्रृंखला:
स्वतंत्रता का मार्ग उन प्रमुख घटनाओं से भरा था जिन्होंने भारतीय आबादी को प्रेरित किया। 1919 में जलियांवाला बाग नरसंहार, 1930 का नमक मार्च, 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन, और भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस और कई अन्य नेताओं के बलिदान इस परिवर्तनकारी यात्रा में महत्वपूर्ण मील के पत्थर थे।
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